इस सर्वे में हुआ खुलासा, 90 फीसदी लोगो ने कहा- हम CAA और NRC के खिलाफ है

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आज देश में किसी भी मुद्दे पर लोगो की राय जानना हो तब आप ऑनलाइन वोटिंग करवा लीजिये यह सबसे आसान तरीका है. यह ऑनलाइन वोटिंग करबाने में आसानी से लोगो से बात कर ली जाती है. लोगो के बिच पहुंच बना लिया जाता है. और सबसे अच्छी बात है हाँ या ना में जबाब मिलता है.

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अभी देश में CAA और NRC को लेकर कई सेलेब्रटी और पत्रकार अपने ट्विटर हैंडल से सर्वे करते नजर आये है कई तो अपने अनुसार रिजल्ट ना आने के कारन ट्वीट तक डिलीट कर दिया। जिसके बाद उनकी सोशल मीडिया पर काफी बेइज्जती भी हुई है.

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मोदी सरकार दवारा लिए गए CAA का फैसले का विरोध देश की कई राजनीती पार्टी कर रही है. कई राज्य सरकारों ने तो सीधे कह दिया है की किसी कीमत पर को हम अपने राज्यों में लागु नहीं करेंगे।

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वही फेसबुक पर इंडियन टाइम ने भी इस को लेकर एक ऑनलाइन सर्वे किया है जिसमे इंडियन टाइम ने अपने फेसबुक हैंडल से पूछा है की “क्या आप #CAA #NRC को सपोर्ट करते है?” इस सर्वे में इंडियन टाइम टीम ने लोगो को दो विकल्प दिए थे चुनने को जिसमें उन्होंने पहले विकल्प में कहा “हाँ हम समर्थन करते है” वही दूसरे विकल्प में कहा की ” नहीं समर्थन करते”

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इस सर्वे में लोगो को 24 घंटे का समय दिया गया था जिसमे करीब 1300 लोगो ने भाग लिया था. इस सर्वे में 10 फीसदी लोगो ने कहा की हम इस कानून का समर्थन करते है वही 90 फीसदी लोगो ने कहा की हम इस कानून का बिलकुल भी सपोर्ट नहीं करते है.

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इस सर्वे को अगर देखा जाये तो इससे साफ़ पता चलता है की लोग इस कानून के खिलाफ है लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं यही वजह भ है की जितने भी गोदी मीडिया के पत्रकार सेलेब्रटी ट्विटर पर पोल्स कर रहे है और बाद में अपनी हार को देखते हुए पोल्स को डिलीट कर रहे है उनको भी समझ आ रहा है इस कानून का देश सपोर्ट नहीं कर रहा है लेकिन उन पत्रकारों की मजबूरी है सरकार के साथ हां में हां मिलाना?

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वही अभी कई राज्यों में लगतार बीजेपी की चुनाव करारी हार को परेशान है खबर आ रही है की दिल्ली चुनाव बाद बीजेपी के केंद्रीय प्रतिनिधित्व अपने सभी साशित राज्यों में राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक करेगी। खुद पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी नेतृत्व चुनाव बाद पार्टी और गठबंधन वाले राज्यों की सरकारों को लोकप्रियता और प्रदर्शन के पैमाने पर सख्ती से परखेंगे।

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इस पैमाने पर खरा नहीं उतरने वाले सीएम, डिप्टी सीएम और वरिष्ठ मंत्रियों को हटाने का सिलसिला शुरू किया जाएगा। पार्टी अब सीएम और राज्य सरकारों की अलोकप्रियता का सियासी खामियाजा नहीं भुगतना चाहती।

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वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और पीएम ने पार्टीशासित राज्यों के मुखिया को कामकाज को ले कर फ्री हैंड दिया था। कई राज्यों में आपसी कलह के बावजूद सीएम को उसके पद पर बनाए रखा गया। इसके बावजूद राज्यों में विधानसभा चुनाव में लचर प्रदर्शन के बाद इस आशय का फैसला लिया गया।

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इस राज्य में सीएम की विधायकों-संगठन के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। इसी प्रकार हालिया विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन के बाद पीएम एक अन्य राज्य के सीएम के प्रदर्शन और कामकाज से खुश नहीं हैं। उक्त राज्य में सीएम और एक वरिष्ठ मंत्री के बीच ठनी हुई है। जबकि दो अन्य छोटे राज्यों में दो साल बाद चुनाव हैं। इन राज्यों के सीएम और सरकार के कामकाज की सख्ती से समीक्षा की जाएगी।

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