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महिलाओं के लिए बड़ी-बड़ी बातें की जाती है योजनाएं लायी जाती है लेकिन जब बात आती है महिला सुरक्षा की तो सरकार बेबस नजर आती है क्या महिलाओं को इन योजनाओं की जरूरत है जब तक खुद सुरक्षित ना हो जाये.

जहां मुझे लगता है हर महिला यही चाहती है कि वो जहां जाए खुद को सुरक्षित महसूस करे। अगर NCRB (राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो)की रिपोर्ट की बात करे तो महिलाओं के साथ सबसे अधिक अपराध उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए ।

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वर्ष 2017 में यूपी में महिलाओं के प्रति कुल 56011 अपराध दर्ज हुए जबकि पूरे देश मे उस वर्ष ऐसे कुल 3.60 लाख अपराध दर्ज किए गए थे। वर्ष 2015 में प्रदेश में महिलाओं के प्रति कुल 35908 और 2016 में 49262 अपराध दर्ज किए गए थे।

वहीं लक्षद्वीप, दमन व द्वीप, दादरा व नागर हवेली जैसे केंद्र शासित प्रदेश और नागालैंड में महिलाओं के प्रति अपराध के सबसे कम मामले दर्ज किए गए हैं।

मध्यप्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ा, राजस्थान में घटा है।

देशभर में साल 2015, 2016 और 2017 में महिलाओं के प्रति अपराध के कितने मामले दर्ज किए गए जिसमे उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर दिल्ली दूसरे और आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर रहे।

बात अगर यूपी की तो यूपी में महिलाओं के प्रति अपराध बढे है कम नहीं हुए है। महिलाओं के साथ ज्यादातर रेप करने वाले उनके जानने वाले होते है या परिवार में ही होते है। जिसपर पारिवारिक दबाव के कारण चाहकर भी महिलाएं आवाज नही उठा पाती और अपराधी बच जाते है।

कई रेप केस ऐसे होते है जिसमें महिलाओं का शोषण नेता करते है और राजनीतिक संरक्षण के कारण बच जाते है इनमे कई बड़े उदाहरण है आप यूपी ही ले लीजिए उन्नाव रेप केस, चिन्मयानंद केस फिलहाल चिन्मयानंद बेल पर बाहर है और सेंगर जनता की आवाज उठाने के कारण सजा काट रहे है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे लगाए जाते है

आखिर सरकारे अपराधियों को क्यों बचाती है महिलाओं के सशक्तिकरण पर बड़े-बड़े भाषण दिए जाते है “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे लगाए जाते है लेकिन जब बात आती है बेटी बचाने की तो ये अपराधी को बचाते है सरकारों में इतनी इच्छा शक्ति की कमी क्यों है?

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बात करे अगर हरियाणा की एक महिला मेहनत करके आईएएस बनती है और फिर उसे इस्तीफा देना पड़ता है क्यों? क्योंकि सरकार उन्हें सुरक्षा नही दे सकती हैं
हम बात कर है 2014 बैच की आईएएस अफसर रानी नागर की जिन्होंने अपने पद से 4 मई 2020 को सिर्फ इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा था और हरियाणा सरकार से गुहार लगाने पर भी उन्हें सुरक्षा नही दी गयी।

यहाँ तक कि उनको घर जाने के लिए जो गाड़ी दी गयी वो रास्ते मे खराब हो गयी एक महिला जिसे अपनी जान का खतरा हो और वो बीच रास्ते मे अपनी बहन के साथ अकेली हो तो क्या बीती होगी उन पर ये शायद सरकार न समझे लेकिन महिलाएं जरूर समझ सकती हैं।

सोशल मीडिया पर महिलाओं के चरित्र पर भद्दी टिप्पणी करना तो जैसे आम बात हो गयी है।

आजकल महिलाओं के चरित्र के बारे में अनर्गल बाते करना और सोशल मीडिया पर महिलाओं के चरित्र पर भद्दी टिप्पणी करना तो जैसे आम बात हो गयी है।

ऐसा ही एक केस है सफूरा जरगर का जो जामिया की PHD की छात्रा है और इस वक़्त गर्भवती है और जेल में बंद है उनके चरित्र पर गंदी टिप्पणी कसी जा रही है उनके बच्चे को जायज और नाजायज के तराजू में तोला जा रहा है लेकिन क्यों? ये तो उनका निजी मामला है फिर क्यों इस तरह की अफवाहें उड़ाई जा रही है।

समाज की सोच और अराजक तत्वों को बढ़ावा क्यों मिल रहा है। गृहमंत्री जी के बारे में अफवाह उड़ाई जाती है तो अफवाह उड़ाने वालो को पकड़ा जाता है लेकिन अगर अफवाहें एक लड़की के लिए उड़ाई जाती है उसके चरित्र पर गलत बाते कही जाती है तो कोई कार्यवाही नही होती। क्या इससे अपराधों को बढ़ावा नही मिल रहा है?

आज का समाज कहाँ जा रहा है महिलाओं के प्रति सम्मान कम होता जा रहा है उन्हें बस एक वस्तु समझा जाता है। क्या घर मे ही बच्चो को ये सीख नही देनी चाहिए कि माँ किसी की भी हो उसका सम्मान करें। बहन किसी की भी हो महिला होने नाते उसका सम्मान करना चाहिए।

पहले के युगों में महिला सम्मान के लिए युद्ध तक लड़े गए है लेकिन आज महिलाओ के साथ होने वाले अपराधों को चटकारे लेकर पढ़ा जाता है। क्या हमसब ने ऐसे ही समाज की कल्पना की थी।

(ये लेख लखनऊ की रहने वाली आरती कनोजिया ने लिखी हैं. ये उनका निजी विचार हो सकता हैं लेकिन आज के समाज की ये कड़वी हकीकत हैं जिसे ठुकराया नहीं जा सकता)