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कुछ युवा कामगार मुंबई से साइकिल से चले ​थे, 25 दिन में उत्तर प्रदेश अपने घर पहुंचे हैं. आठ महीने की गर्भवती नासिक हाइवे पर है. जब उसे सबसे ज्यादा देखभाल की जरूरत है, तब वह अपने जीवन के सबसे कठिन सफर पर है.

अनुदेवी 5 महीने की गर्भवती हैं. उसके पास खाने के लिए सिर्फ बिस्कुट है, वह भी छोटे बच्चों के लिए. अगर रास्ते में कोई रोक कर खाना खिला दे रहा है, तो वही उनके जीने का सहारा है. ग्रुप में करीब 15 लोग हैं. एक बच्चा एक साल का और एक बच्चा ढाई साल का है.

उसी हाइवे पर 17 दिन का बच्चा मां की गोद में सफर पर है. मां उसे लेकर बार बार छांव में बैठ जाती है, फिर चल पड़ती है. उसे बार बार चक्कर आ रहे हैं. वह तीन दिन से चल रही है, कितने दिन और चलना है, कोई नहीं जानता.

रामदास सड़क पर चलते हुए बुधवार रात एक गाड़ी से टकरा गए. तबसे उनके सिर से खून बह रहा है. 12 घंटों से ज़्यादा का समय हो चुका है, इलाज भी नहीं हो पाया है. वे कल्याण से नागपुर जा रहे हैं. बहते खून के साथ वे कहां जाएंगे, यह ​अब सिर्फ ईश्वर जानता है.

बच्चे हैं, बुजुर्ग हैं, बीमार हैं, गर्भवती महिलाएं हैं. अनगिनत लोग हैं. दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात, आंध्र जैसे राज्यों से लोग पैदल भाग रहे हैं.

अगर किसी की आंख में मांस न उग आई हो तो उसे दिख सकता है कि सभी बड़े शहरों से यूपी बिहार आने वाले हाइवे थके हुए पांवों से भरे हैं. लोग भूखे पेट, खाली जेब और निराश जिंदगियां लेकर लौट रहे हैं. घोषणाओं ने बहस जीत ली है. उनकी इतिश्री हो चुकी है. पाखंड पूरा हो चुका है.

ट्विटर पर राष्ट्र निर्माण चल रहा है. ट्विटर का राष्ट्र निर्माण चुनावी माहौल बनाता है और बनाए रखता है. लेकिन जो असल में राष्ट्र निर्माण कर रहे थे, वे जान बचाने के लिए बदहवास भाग रहे हैं.

राष्ट्र निर्माण क्या है? क्या सड़कें बनाना, इमारतें बनाना, खनन करना, सफाई करना, बुनकरी करना, फैक्ट्री में हड्डी गलाना राष्ट्र निर्माण नहीं है? जो इनमें लगे थे, वे पैदल चल रहे हैं.

असली राष्ट्र निर्माता की जान पर संकट है. असली राष्ट्र निर्माताओं को सबसे संकट की घड़ी में उनकी किस्मत के सहारे छोड़ दिया गया है. आपदा राहतें भी ट्विटर के ट्रेंड के ​साथ बिला गई हैं

( ये जानकारी कृष्णकांत जी के फेसबुक बॉल से ली गयी हैं )