मोदी सरकार कई ऐसे बड़े बड़े फैसले लिया हैं. जिसकी ना तो जरूरत था ना ही उस फैसले को लेने से पहले कोई प्लान बनाया हो. जिसका नतीजा देश की जनता को हर बार अपनी गाढ़ी कमाई खोकर, जान देकर चुकानी पड़ती हैं.
आज कोरोना वायरस से पूरी दुनिया में परेशान हैं. भारत कुछ अधिक हैं. क्योंकि यहाँ सबसे अधिक मजदूरी दिहाड़ी करने वाले लोग हैं. जिन्हे हर रोज दो वक्त के लिए रोटी जुटाना होता हैं.
ऐसे देश में मोदी सरकार द्वारा दो बड़े फैसले नोटबंदी और देशबन्दी (लॉक डाउन) करना आम लोगों पर कहर बन कर टूट पड़ा हैं. जैसे नोटबंदी में अचानक आधी रात से सबकुछ ठप्प कर दिया वैसे कोरोना वायरस को लेकर आधी रात से पुरे देश में ताला बंद कर दिया.
कोरोना : भारत में पहला मामला 30 जनवरी को आया फिर भी 24 फरवरी को गुजरात में ट्रम्प की रैली क्यों कराई गयी?
ना तो कोई घर से बाहर जा सकता हैं ना कोई आ सकता हैं. इससे दूसरे राज्यों में काम करने वालों की लोगों के लिए तो जैसे आसमान टूट पड़ा. उनके पास ना खाने का पैसा था, ना काम, ना राशन।
आज लॉक डाउन हुए पचास दिन होने को करीब हैं और अब सरकार कह रही हैं हम आमलोगों को उनके घर तक पहुचायेंगे. जो काम लॉक डाउन से पहले करना था.
अब इसी को लेकर ट्विटर पर Prof. इलाहाबादी (@ProfNoorul) ने सवाल उठाया हैं उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा ” मार्च में मौका था तब प्रवासी मजदूरों को घरों तक भेजा जा सकता था। लेकिन तब सख्ती की और बिना प्लान के काम किया। अब जब हालात हाथ से निकलने लगे तो स्पेशल ट्रेनें और ट्रकों में भर कर लोगों को भेजा जा रहा है। “
वही उन्होंने अपने दूसरे ट्वीट में कहा ” यही नहीं अब तो प्रदेश की सरकारें खुद जनता से पूंछ रही है लॉकडाउन बढ़ाया जाए या नहीं। सच बताऊं जनता इतनी मजबूर है कि उसको अभी आप कुछ भी बोलेंगे वो करेगी, लेकिन उसको सुरक्षित घर भेजवा दो।”
आपको बता दे की कोरोना का पहला केस भारत में 30 जनवरी को मिला था। इसी दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली विश्व स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित किया था। और इसके अगले दिन राहुल गाँधी ने पहली बार कोरोना के ऊपर सरकार को आगाह किया. इसके बाद राहुल गाँधी ने 13 मार्च तक एक-एक कर कम से कम पाँच -सात ट्वीट किए। लेकिन सरकार कोरोना मुद्दें को इग्नोर कर दिया. जिसका आज नतीजा देश को भुगतना पड़ रहा हैं