“मुझे किसी भी स्पेशल ट्रेन की जानकारी नहीं है. इतने दिनों बाद मैंने पैदल ही जाने का फैसला इसलिए किया है, क्योंकि मैं दिल्ली में नहीं मरना चाहता हूं, मैं अपने गांव जाकर मरना चाहता हूं.”
यह दिल्ली से पैदल यूपी के लिए निकले एक मजदूर का बयान है, जिसे एएनआई ने प्रसारित किया है.
भारत का अनाज भंडार जरूरत से तीन गुना ज्यादा भरा है. लोग इसलिए भाग रहे हैं कि कहीं भूख से मर न जाएं! जिन्होंने नई फसलें तैयार कर दी हैं, उन्हीं के बच्चे शहरों से इसलिए भाग रहे हैं कि भूख से मर न जाएं.
लॉकडाउन के बाद भाग रहे मजदूरों से पूछा गया था कि क्यों भाग रहे हो, तब भी उन्होंने कहा था कि घर नहीं गए तो यहां दाना बिना मर जाएंगे. जो आज भाग रहे हैं वे भी यही कह रहे हैं.
लॉकडाउन के दो तीन बाद से मजदूरों ने शहर से भागना शुरू किया था. वे अफवाह पर नहीं भागे. जब उन्होंने देखा कि काम बंद हो गया, खाने का संकट हो गया, जान पर बन आई तब भागे.
आज 45 दिन बाद जो मुंबई और दिल्ली से भाग रहे हैं, उनमें धीरज की कमी नहीं है. उनमें किसी भी व्यक्ति से ज्यादा धैर्य है. धैर्य और दृढ़ता उस आठ महीने की गर्भवती महिला के सामने पानी मांगेंगी जो नासिक हाइवे पर पैदल घर निकली है.
दुखद तो यह है कि इन करोड़ों लोगों के लिए कोई अफसोस जताने वाला भी नहीं है. वे कल भी बदहवासी में भाग रहे थे, आज भी भाग रहे हैं. लाखों लोग रास्ते में हैं और अगले कई दिनों तक रास्ते में ही रहेंगे. कुछ अपनी सरजमीं पर पहुंचेंगे और कुछ कभी नहीं पहुंचेंगे, जैसे 16 लोग आज नहीं पहुंचे. आप उनका मजाक उड़ा सकते हैं कि पटरी पर सो रहे थे. यह कोई नहीं पूछता कि उन्हें पटरी पटरी, हाईवे हाईवे भागने की नौबत क्यों आई है?
लॉकडाउन के बाद से अब तक पैदल चलने, दुर्घटना, भूख, आत्महत्या आदि के चलते 370 मौतें हो चुकी हैं. यह डाटा तीन शोधकर्ताओं का है जो मीडिया में छपी खबरों को एकत्र कर रहे हैं.
कोई यह नहीं पूछता कि पीएम केयर्स में एकत्र पैसा किसके लिए है? कोई नहीं पूछता कि 20 हजार करोड़ का हवा महल क्यों जरूरी है और इन गरीबों को मरने के लिए ही सही, उनके घर पहुंचा देना क्यों जरूरी नहीं है?
(ये लेख कृष्णकांत जी के फेसबुक बॉल से ली गयी हैं )