Facebook
Twitter
WhatsApp
Telegram
Linkedin

दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क की इस महान उपलब्धि को सलाम कीजिए कि उसने 45 दिन में ढाई लाख लोगों को घर पहुंचा दिया.

2011 की जनगणना के अनुसार, प्रवासी मज़दूरों की संख्या 14 करोड़ के आसपास है.

विश्व बैंक ने 22 अप्रैल एक रिपोर्ट में कहा, ‘भारत में लॉकडाउन से लगभग चार करोड़ आंतरिक प्रवासियों की आजीविका पर असर पड़ा है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) के आंकड़े हैं, ‘तालाबंदी घोषित होने के बाद करीब 12 करोड़ लोगों का रोजगार छूट गया है.

2018-19 का आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या कुल वर्क-फोर्स का 93% है. नीति आयोग ने इसे 85% और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने इसे 82% बताया है.

आजीविका ब्यूरो के अनुसार देश में 12 करोड़ से भी ज़्यादा ऐसे मज़दूर हैं जो गांवों से बड़े शहरों की ओर आते हैं. इनमें से लगभग चार करोड़ सिर्फ निर्माण क्षेत्र से जुड़े हैं.

इन सबके आधार पर माना जा सकता है कि 10 से 15 करोड़ मजदूर/कामगार शहरों या कस्बों में फंसे हो सकते हैं.

गृह मंत्रालय ने आज देश को बताया है कि रेलवे ने 222 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाकर करीब 2.5 लाख लोगों को घर पहुंचाया है.

मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि कितने लोग अभी सड़कों पर पैदल चल रहे हैं, उनके लिए क्या इंतजाम हैं, न यही बताया कि कितने लोग पैदल चलकर मरे हैं.

लॉकडाउन के बाद जो भगदड़ शुरू हुई थी, वह और ज्यादा बढ़ गई है. इस हफ्ते मजदूरों के पलायन की खबरों की बाढ़ आई है. इसके लिए ​आप एनडीटीवी समेत विभिन्न वेबसाइट खंगाल सकते हैं.

सरकार की प्राथमिकता इन गरीबों की मदद करना नहीं है, उनकी प्राथमिकता है कि वे देश को बता दें कि हम सुपीरियर सरकार हैं और बड़ा अच्छा काम कर रहे हैं.

(ये लेख कृष्णकांत जी के फेसबुक बॉल से ली गयी हैं )